झूठे पैग़म्बरी के दावे से मिलने वाली सीख:
एक समय की बात है, एक मसख़र और गरीब व्यक्ति ने पैग़म्बरी का झूठा दावा किया। उसका उद्देश्य सिर्फ़ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना और अपनी गरीबी से छुटकारा पाना था। वह अपनी बातों में ऐसे दोहरे अर्थ वाले वाक्य इस्तेमाल करता जिनमें से एक का मतलब नुबूवत (पैग़म्बरी) से जुड़ सकता था और दूसरा साधारण अर्थ रखता था।
उसने समझाया कि उसका नबी होने का मतलब यह है कि वह अल्लाह की ओर से इस दुनिया में आया है और उसे मुल्क-ए-अदम से भेजा गया है। लोगों ने उससे सवाल किया कि हम सब भी तो ‘अदम’ (शून्य) से ही आए हैं, फिर तेरे अंदर क्या ख़ासियत है?
उसने जवाब दिया: हाँ, तुम लोग भी तो आए हो लेकिन ऐसे जैसे सोते हुए बच्चे। तुम्हें न तो रास्ते का इल्म है और न मंज़िल का। जबकि मैं जागरूकता की हालत में आया हूँ।
जब यह मामला बढ़ा तो लोगों ने बादशाह से कहा कि इसे सज़ा दी जाए। मगर बादशाह ने देखा कि यह बहुत कमजोर है, शायद सज़ा सहन न कर पाए। उसने फैसला किया कि इसे सज़ा देने से बेहतर है कि समझाया जाए।
बादशाह ने अकेले में उससे पूछा: तू कहाँ का रहने वाला है और क्या करता है?
उसने जवाब दिया: मैं दुनिया के ‘दारुल मलामत’ यानी गुनाह और फरेब के घर में आया हूँ।
बादशाह ने मज़ाक में पूछा: आज नाश्ते में क्या खाया?
तो वह बोला: अगर खाने को कुछ होता तो पैग़म्बरी का दावा क्यों करता?
यह वाक़िया इस बात को बयान करता है कि ऐसे लोग अल्लाह के संदेश को स्वीकार नहीं करते। मगर यदि कोई खूबसूरत औरत उन्हें संदेश भेजे तो वह सब कुछ क़ुर्बान करने को तैयार हो जाते हैं। अल्लाह की ओर बुलाने वाला उन्हें भारी लगता है, मगर दुनियावी ख्वाहिशें उन्हें प्यारी होती हैं।
सीख
इस वाक़िये से हमें यह सिख मिलती है कि झूठ और दिखावा कभी टिकता नहीं। इंसान अगर अपनी नीयत को पाक और दिल को सच्चाई से भर ले तो उसे अल्लाह का रास्ता साफ़ नज़र आता है। हमें चाहिए कि दुनियावी ख्वाहिशों से बचकर आख़िरत की तैयारी करें और सच्चे ईमान वालों की तरह अल्लाह के संदेश को अपनाएँ।