आग में फेंके गए हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम:
दुनिया के इतिहास में कई ऐसे किस्से दर्ज हैं जो हमें अल्लाह की ताक़त और उसके बंदों पर उसकी रहमत का एहसास कराते हैं। ऐसा ही एक वाक़िया हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और नमरूद के बीच का है।
नमरूद एक ज़ालिम बादशाह था जिसने खुद को “खुदा” कहने की कोशिश की। लेकिन जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उससे बहस (मुनाज़रा) की तो नमरूद हार गया। इस हार के बाद उसके दिल में दुश्मनी और नफ़रत भर गई।
नमरूद की चालाकी और बड़ी आग की तैयारी
नमरूद ने तय किया कि वह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को खत्म कर देगा। उसने एक बड़ी चारदीवारी बनवाई और महीनों तक उसमें लकड़ियाँ जमा करवाईं। इतनी ज़्यादा लकड़ी इकट्ठा की गई कि जब आग जलाई गई तो उसकी लपटों से उड़ने वाले परिंदे भी जलकर गिरने लगे।
हज़रत इब्राहीम को आग में फेंकने की योजना
नमरूद ने एक बड़ा गोपन (मंजनीक) बनवाया ताकि उसमें हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को बांधकर आग में फेंका जा सके। जब आपको इसमें रखा गया, तो आपकी ज़बान पर सिर्फ यही कलिमा था:
हसबियल्लाहु वा निअमल वकील
मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा मददगार है
अल्लाह का करिश्मा – आग का ठंडी हो जाना
जैसे ही नमरूद ने आपको आग में फेंका, उसी पल अल्लाह तआला ने आग को हुक्म दिया:
ऐ आग! मेरे खलील (दोस्त) इब्राहीम को मत जलाना, ठंडी और सलामती का घर बन जा।
आग तुरंत ही बाग़-बहार में बदल गई। जहाँ जलने की उम्मीद थी वहाँ फूल खिले, ठंडी हवाएँ चलीं और हर तरफ़ शांति छा गई। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम सुरक्षित और सलामत रहे।
सीख क्या मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि अगर इंसान का ईमान मज़बूत हो और वह अल्लाह पर पूरा भरोसा रखे तो कोई ताक़त उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अल्लाह अपने नेक बंदों को हर मुश्किल से बचा लेता है।