जब हज़रत अबूबक्र और अली (रज़ि.) एक-दूसरे को जन्नत की बशारत दे रहे थे:
एक बार हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) हज़रत अली (रज़ि.) की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे।
हज़रत अली ने हैरान होकर पूछा —
“ऐ अबूबक्र! मुझे देखकर आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?”
हज़रत सिद्दीक़ ने जवाब दिया —
ऐ अली! मैं इस लिए मुस्कुरा रहा हूँ कि मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुशखबरी दी है कि क़यामत के दिन जब लोग पुल-सिरात से गुज़रेंगे तो कोई उस वक़्त तक पार नहीं हो पाएगा जब तक अली उसकी इजाज़त की चिट्ठी नहीं देगा।
यह सुनकर हज़रत अली (रज़ि.) भी मुस्कुरा उठे और कहने लगे —
ऐ ख़लीफ़तुल-मुस्लिमीन! मैं भी आपको बधाई देता हूँ। क्योंकि मुझसे भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है —
ऐ अली! पुल-सिरात की राहदारी केवल उसे देना जो अबूबक्र से मोहब्बत करता हो, और जिसने अबूबक्र से दुश्मनी रखी हो, उसे इजाज़त न देना।
यह प्यारा मुहब्बत भरा वाक़िया बताता है कि सहाबा के बीच कितनी गहरी दोस्ती, इज्ज़त और दिली मोहब्बत थी। क़यामत के सबसे मुश्किल मुकाम — पुल-सिरात — को पार करने के लिए केवल अमल ही नहीं बल्कि दिलों की मोहब्बत और साफ़ी भी बहुत मायने रखेगी।
इस वाक़िए से हमें क्या सिख मिलती है?
-
सहाबा-ए-किराम आपस में शिद्दत से एक-दूसरे से मोहब्बत करते थे।
-
पुल-सिरात से कामयाबी से गुजरना न सिर्फ अमल, बल्कि दिल की हालत पर भी निर्भर है।
-
अल्लाह अपने वफ़ादार बंदों को दूसरों की शफ़ाअत (recommendation) का भी इख़्तियार देगा।