रूहानी सफर की हकीकत:
ए अज़ीज़! दिल का असली नूर रूह से मिलता है। यह रूह कोई उधार की चीज़ नहीं बल्कि अल्लाह की ओर से मिली अमानत है। जब यह जिस्म खत्म हो जाएगा और हाथ-पाँव मिट्टी में मिल जाएंगे, तो केवल रूह ही वह हकीकत होगी जो आगे बढ़ेगी। इसलिए ज़रूरी है कि इंसान अपनी रूह को ज़िंदा और पाक रखे।
नफ़्स और रूह की पहचान
कुरआन हमें यह सिखाता है कि न केवल नेक काम करना बल्कि उस नीयत और अमल को अल्लाह के दरबार में पेश करना ही असली नेकी है। सिर्फ़ बाहरी दिखावे की इबादतें, जैसे कि नमाज़ और रोज़ा, अगर दिल से अल्लाह के लिए न हों तो उनका कोई असली असर नहीं रहता। इसलिए ज़रूरी है कि इंसान अपने नफ़्स और रूह की पहचान करे और सच्चे दिल से नेकियों की तरफ़ बढ़े।
यह दुनिया की बहुत सी चीज़ें सिर्फ़ इसी जीवन तक सीमित हैं। शादी, रोज़ा-नमाज़ या कोई भी इबादत अगर सच्चे इरादे के बिना की जाए तो वो दूसरी दुनिया में नहीं जाएगी। लेकिन इंसान के अच्छे कर्म, नेक नीयत और सच्ची रूहानी कोशिश हमेशा बाकी रहती है। यही चीज़ इंसान को क़यामत के दिन अल्लाह के करीब करती है।
कुर्बानी का असली मक़सद
जैसे बकरी की कुर्बानी सिर्फ़ उसके साए की कुर्बानी नहीं बल्कि अल्लाह के करीब होने का ज़रिया है। उसी तरह इंसान को समझना चाहिए कि इबादत और नेक काम असली मक़सद से करने चाहिए, न कि केवल दिखावे या दुनियावी फायदे के लिए। यही इंसान को असली फ़ल देता है।
हमें इस वाक़िए से क्या सीख मिलती है?
इस इस्लामी वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान का असली नूर उसकी रूह है, जो अल्लाह से जुड़ी होती है। दुनियावी चीज़ें और बाहरी इबादतें फानी हैं, लेकिन सच्ची नीयत और दिल से किया गया नेक अमल ही क़यामत तक इंसान के काम आता है। इसलिए हर काम में अल्लाह की रज़ा को मक़सद बनाना ज़रूरी है।