कब्र पर रोती औरत और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नसीहत:
एक बार हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक औरत को देखा जो एक क़ब्र के पास बैठी ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी। वह किसी अपने प्यारे की मौत से दुखी थी और गहरे ग़म में डूबी हुई थी। रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसकी तरफ़ बढ़े और बहुत नरमी के साथ उसे तसल्ली देते हुए फ़रमाया — सब्र करो।
औरत ग़म की हालत में थी और पहचान न सकी कि उसके सामने कौन खड़ा है। उसने अदब जाने बिना गुस्से में कहा — तुम क्या जानो कि मेरे ऊपर क्या बीत रही है? दूर हो जाओ यहां से।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिना कुछ कहे वहां से खामोशी से चल दिए। कुछ देर बाद लोगों ने उस औरत से कहा कि तुम्हें पता है जिनसे तुमने इस तरह बात की थी, वह अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम थे। यह सुनकर वह घबरा गई। दौड़ती हुई हाज़िर हुई और रोते हुए माफ़ी मांगने लगी कि वह आपको पहचानती नहीं थी।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस पर कोई नाराज़गी जाहिर नहीं की, बल्कि सिर्फ़ इतना फरमाया — सब्र वही होता है जो मुसीबत आने के पहले ही लम्हे में किया जाए। यानी जब ग़म या विपत्ति अचानक आए, उसी वक्त अपने दिल को मजबूत रखना, अल्लाह पर भरोसा रखना और रो-रोकर बिफर जाने की जगह सब्र करना ही असल सब्र है।
इस वाक़िये से इस्लाम की खूबसूरती सामने आती है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को तकलीफ में देखकर उनको प्यार से सीढ़ी-दर-सीढ़ी सुधार की तरफ़ लाते थे। वह यह समझाते थे कि दुख चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, रोकर और हिम्मत हारकर नहीं बल्कि सब्र और अल्लाह पर भरोसा रखते हुए ही सामना करना चाहिए।
इस वाकिए से हमें सीख मिलती है:
मुसीबत के वक्त घबराना नहीं चाहिए। असली सब्र वह है जो मुसीबत के पहले लम्हे में किया जाए। परेशानी में अल्लाह पर भरोसा रखें और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई गई राह पर चलते हुए सब्र से काम लें।