नियत की सच्चाई और रूहानी तरक़्क़ी:
हकीमों और दानाओं का कहना है कि हमेशा नेक और भलाई करने वाले लोगों की सोहबत (संगत) में रहो, न कि उन लोगों की जो तुम्हारे मेहनत की कमाई को अपने लालच और कमीनगी से हासिल करें। ऐसे झूठे पीर इंसान को रोशनी नहीं दे सकते, बल्कि उसे अंधेरे में ले जाते हैं। जब उनके अपने दिल में नूर (प्रकाश) ही नहीं, तो दूसरों को रौशनी कैसे दे सकते हैं?
झूठे रहबर की पहचान
ऐसे झूठे पीरों की ज़बान तेज़ होती है, लेकिन दिल अंधकार से भरा होता है। उनमें न तो अल्लाह की खुशबू होती है और न ही कोई रूहानी असर। अक्सर वे दरवेशों की बातें चुराकर खुद को बड़ा दिखाते हैं। लेकिन असल में उनके अंदर रूहानीत नहीं होती। वे बायज़ीद बिस्तामी रहमतुल्लाह अलैह जैसे बुजुर्गों की बुराई करते हैं, जबकि खुद अंदर से यज़ीद जैसे होते हैं।
इंसान का असल हाल और मुरिद की नियत
समय के साथ इंसान का असली हाल सामने आ जाता है। जैसे किसी दीवार के नीचे खजाना हो, या फिर उसमें सांप का बिल हो। अगर कोई मुरिद (शिष्य) सच्चे दिल से झूठे पीर को भी रहबर मान ले, तो उसकी नियत और ख़ुलूस (ईमानदारी) की वजह से वह ऊँचे मकाम तक पहुंच सकता है। यहाँ तक कि उसे ऐसे रूहानी अहवाल (अनुभव) मिलते हैं जो उसके पीर ने सालों की साधना में भी हासिल नहीं किए।
नियत की सच्चाई का असर
यह बात उसी तरह है जैसे कोई इंसान क़िब्ला की सही दिशा जाने बिना नमाज़ पढ़े, लेकिन उसकी नियत सच्ची हो तो अल्लाह तआला उस नमाज़ को कबूल कर लेता है। इसी तरह अगर मुरिद का दिल साफ़ हो और वह अल्लाह की ओर सच्चे इरादे से बढ़े, तो उसकी राह आसान हो जाती है, चाहे उसका पीर झूठा ही क्यों न हो।
बनावट और रियाकारी से बचाव
इंसान को कभी भी अपनी रूहानी कमी को छुपाने के लिए झूठी बनावट नहीं करनी चाहिए। झूठी शोहरत और दिखावा इंसान को गिराता है, जबकि सच्चाई और अख़लास (ईमानदारी) इंसान को बुलंदियों पर ले जाते हैं।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िए से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा सच्चे और नेक रहबर की तलाश करनी चाहिए। झूठे पीरों से बचना ज़रूरी है, क्योंकि वे खुद अंधेरे में होते हैं। साथ ही, इंसान की नियत और सच्चाई ही उसकी सबसे बड़ी ताक़त है। अल्लाह तआला सच्चे इरादों को कभी ज़ाया नहीं करता।