दुनिया की फानी हकीकत और आख़िरत की अमर दौलत

 रूहानी नूर और इंसान की हकीकत:

जिसे नूर-ए-हक़ मिल जाता है, उसके लिए बुढ़ापा या जिस्मानी कमजोरी कोई मायने नहीं रखती। उसका जिस्म भले बूढ़ा हो जाए, मगर उसका दिल और रूह हमेशा जवान रहते हैं। ऐसा इंसान मौत के वक़्त भी अल्लाह तआला की मुलाक़ात का शौक़ रखता है।

नूर से महरूम इंसान की हालत

जो लोग अनवार-ए-इलाही से महरूम रहते हैं, उनकी हालत ऐसे बाग़ की तरह होती है जिस पर पतझड़ छा चुका हो। वो सूखा हुआ बाग़ उनकी ख़ुदपसंदी की वजह से बर्बाद होता है। यह अहंकार इतना बड़ा जुर्म है कि इंसान को रूहानी नूर से दूर कर देता है।

हुस्न और असली मालिकाना हक़

इंसान अगर हुस्न को अपनी मिल्कियत समझ ले, तो अल्लाह वह हुस्न वापस ले लेता है ताकि यह मालूम हो जाए कि असली हुस्न सिर्फ़ उसी का है। दुनियावी ख़ूबसूरती दरअसल अल्लाह की एक तजली (चमक) है। असल में तमाम खूबियाँ अल्लाह ही के लिए हैं, और काइनात उसी की ज़ात का ज़ाहिरा (प्रकाशन) है।

काइनात और उसका असली नूर

इस दुनिया की तमाम खूबसूरत चीज़ें अस्थायी (अरज़ी) हैं। जैसे रंगीन शीशे में सूरज की रोशनी अलग-अलग रंग में दिखाई देती है, जबकि असल में सूरज का नूर एक ही है। उसी तरह काइनात में दिखाई देने वाली तमाम खूबियाँ सिर्फ़ अल्लाह के नूर का परछाईं हैं।

शुकर और सब्र का इनाम

अगर इंसान किसी नेमत के छिन जाने पर भी अल्लाह का शुकर अदा करता है, तो अल्लाह उसे सौ गुना ज़्यादा अता करता है। लेकिन अगर इंसान नाशुक्रा बने तो वो नेमत हमेशा के लिए छिन जाती है और उसकी याद भी बाकी नहीं रहती। इसलिए शुक्रगुज़ारी ही असली दौलत है।

सख़ावत और आख़िरत का इनाम

क़ुरआन में आया है कि: अल्लाह को क़र्ज़-ए-हसन दो। यानी अपनी ज़रूरत कम करके दूसरों पर खर्च करो। जो इंसान सख़ावत से दूसरों की मदद करता है, उसके लिए आख़िरत में बेहतरीन इनाम है।

मौत और शुकरगुज़ार बंदे

जब शुकरगुज़ार इंसान मरता है, तो मौत भी उसकी अमानत वापस लौटा देती है। मगर ये इंसान कहते हैं कि अब हमें दुनिया की दौलत की कोई ज़रूरत नहीं, क्योंकि हमें आख़िरत की अमर दौलत मिल चुकी है। यही असली सफ़लता है।

फना और बका का दर्जा

जो इंसान अल्लाह की राह में फना हो जाता है, उसे बका (हमेशा की ज़िंदगी) का दर्जा मिलता है। उसकी मुश्किलें हल हो जाती हैं, और उसका नफ़्स (अहंकार) मिटकर रूहानी ताक़त बन जाता है। यही लोग दुनिया में भी अल्लाह की मदद से क़िलों पर झंडे गाड़ते हैं।

ग़ैर मौजूद और मौजूद का राज़

दुनिया हमें मौजूद नज़र आती है मगर असल में यह ग़ैर मौजूद है। जबकि आख़िरत मौजूद है मगर नज़र नहीं आती। जैसे हवा का अस्तित्व दिखता नहीं मगर धूल उड़ाकर उसका पता चलता है। इसी तरह अल्लाह की हकीकत नज़र नहीं आती मगर पूरी काइनात उसी की निशानी है।

दोस्त, माल और नेक अमल

दुनिया में इंसान के तीन साथी होते हैं – दोस्त, माल और नेक अमल। मौत के वक्त दोस्त कब्र तक साथ जाते हैं, माल यहीं छूट जाता है, मगर नेक अमल हमेशा साथ रहते हैं। यही अमल आख़िरत में रोशनी बनकर इंसान के लिए राह आसान करते हैं।

सीख:

इस वाक़िये से हमें यह सिख मिलती है कि:

  • इंसान की असली दौलत शुकरगुज़ारी और सख़ावत है।

  • हुस्न, माल और दुनिया की नेमतें सब अस्थायी हैं।

  • आख़िरत की कामयाबी सिर्फ़ नेक अमल और अल्लाह पर भरोसा करने से मिलती है।

  • मौत के बाद भी सिर्फ़ नेक अमल ही इंसान के सच्चे साथी होते हैं।

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