सूफियों का दिल – हकीकत का आईना:
दुनिया में हमेशा से बादशाहों की अपनी खास परंपराएं रही हैं। दरबार में वे अपनी ताकत और सोच को अलग-अलग ढंग से जाहिर करते थे। यह एक इस्लामी वाक़िआ हमें यही सिखाता है कि बादशाह किस तरह अलग-अलग लोगों को अपनी महफिल में जगह देते थे।
बादशाह और दरबार की रीत
बादशाहों की यह आदत होती थी कि वे अपने बाएं हाथ की ओर पहलवानों और ताकतवर लोगों को खड़ा करते थे। इसकी वजह यह थी कि दिल शरीर के बाईं ओर होता है और ताकत का ताल्लुक दिल से जोड़ा जाता है। वहीं, दाएं हाथ की ओर वे लेखक और हिसाब रखने वालों (मुंशी और अहल-ए-क़लम) को रखते थे क्योंकि लिखने का काम दाएं हाथ से किया जाता है।
सूफियों की खास जगह
सबसे खास बात यह थी कि बादशाह हमेशा सूफियों को अपने सामने बैठाते थे। वजह यह थी कि सूफी दिल और रूह का आईना होते हैं। जैसे आईना सामने रखकर इंसान खुद को देखता है, वैसे ही सूफियों का दिल जिक्र और फिक्र से इतना साफ होता है कि उसमें हकीकत साफ झलकती है।
सूफियों का दिल – असली आईना
सूफियों के दिल में अल्लाह का जिक्र और तसव्वुर भरा होता है। यही वजह है कि उनका दिल आईने की तरह साफ और चमकदार बन जाता है। जब उनका दिल सच्चाई को ग्रहण करता है तो उसमें असली हुस्न (सुंदरता) की झलक नज़र आती है। यही कारण है कि सूफियों को दरबार में सामने बिठाना असली हकीकत की पहचान माना गया।
हमें क्या सीख मिलती है?
इस वाकिए से हमें यह सीख मिलती है कि असली खूबसूरती चेहरे या ताकत में नहीं, बल्कि दिल की साफ़गोई और अल्लाह के जिक्र में है। जो इंसान अपने दिल को आईने की तरह साफ़ रखता है, वही सच्चे मायनों में खूबसूरत और हकीकत को पहचानने वाला होता है।