तारीफ़ का धोखा और विनम्रता की अहमियत:
इंसान का शरीर एक पिंजरे की तरह है और जान (रूह) उस पिंजरे में क़ैद होती है। अंदर और बाहर के लोग अक्सर अपने छल और धोखे से इंसान को प्रभावित करते हैं। कोई उसे कहता है कि तुम जैसा कोई नहीं है, तुम फ़ज़ल, एहसान और सख़ावत का समंदर हो। कोई कहता है कि यह तो ऐश और
मौज-मस्ती का समय है – पियो, खाओ और दोस्ती निभाओ।
जब इंसान दूसरों को अपने पीछे भागते देखता है, तो घमंड से भरकर हद से आगे निकल जाता है। लेकिन वह यह नहीं समझता कि उससे पहले हज़ारों लोगों को शैतान इसी नहर में बहा कर डुबा चुका है।
दुनिया की चालबाज़ी और चालाकियाँ एक मीठे निवाले जैसी लगती हैं। लेकिन असल में यह आग से भरा हुआ निवाला है। इंसान उसका स्वाद लेता है, मगर बाद में धुआँ और जलन सामने आती है।
कुछ लोग कहते हैं कि दूसरों की झूठी तारीफ़ का हम पर कोई असर नहीं होता। लेकिन सच्चाई यह है कि असर ज़रूर होता है, बस हमें महसूस नहीं होता। जैसे बुराई सुनकर दिल दुखी होता है, उसी तरह बेवजह की तारीफ़ से दिल खुश हो जाता है। तारीफ़ मीठी लगती है लेकिन ज़्यादा मीठा खाने से फ़ोड़े-फुंसियाँ निकल आते हैं। इसके उलट, कोई कड़वी दवा जबरदस्त इलाज करती है और गंदगी को बाहर निकाल देती है।
नफ़्स तारीफ़ सुनकर फ़िरऔन बन जाता है। इसलिए इंसान को चाहिए कि हमेशा अपने आप को विनम्र बनाए रखे। कभी भी बादशाहत या सरदारी की तमन्ना न करे। जितना हो सके लोगों का खिदमतगार बने।
शैतान हमेशा इंसान को फँसाने आता है क्योंकि वह जानता है कि असल हक़ीक़त में इंसान उससे भी बड़ा और उसका उस्ताद है। यही वजह है कि इंसान को बहुत एहतियात करनी चाहिए।
हमें इस वाक़िये से क्या सीख मिलती है?
इस वाक़िये से हमें यह सीख मिलती है कि झूठी तारीफ़ और घमंड इंसान को बर्बाद कर देते हैं। दुनिया की चमक-दमक अस्थायी है, असल कामयाबी विनम्रता, सेवा और अल्लाह की इबादत में है। हमें हमेशा नफ़्स और शैतान से बचते हुए सादगी और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए।