खलीफा हज़रत उमर रज़ि. की ईमानदारी की मिसाल
इस्लामी इतिहास में ऐसे कई प्रेरक वाक्यात हैं, जो हमें इंसाफ़, बराबरी और नेतृत्व की असली परिभाषा सिखाते हैं। ऐसा ही एक वाक्या है, जब आज़रबाइजान की फतह के बाद एक (उत्तम किस्म का) हलवा हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ि. के पास बतौर तोहफा भेजा गया।
जब वह हलवा हज़रत उमर रज़ि. को पेश किया गया, तो उन्होंने फ़ौरन पूछा:
क्या यह हलवा सब लोगों ने खाया है, या सिर्फ मेरे लिए आया है?
लाने वाले ने जवाब दिया:
यह तो खास तौर पर सिर्फ आपके लिए आया है।
यह सुनते ही हज़रत उमर रज़ि. ने हलवा खाने से इंकार कर दिया और उसी समय भेजने वाले के नाम एक ख़त लिखा:
अल्लाह के बंदे अमीर-उल-मोमिनीन उमर की तरफ से, अुतबा बिन मरकद के नाम। सुनो! यह हलवा न तुम्हारी मेहनत से आया है, न तुम्हारे बाप-दादा की कमाई है। हम सिर्फ वही चीज़ खाएंगे, जो सारे मुसलमान अपने घरों में पेट भरकर खा सकें।
यह बात सुनकर सब लोग हज़रत उमर रज़ि. की ईमानदारी और इंसाफ़ पर हैरान रह गए।