सात कमरों का किस्सा और हक़ का उजागर होना

ज़ुलेखा और हज़रत यूसुफ़:

ज़ुलेखा, जो बेमिसाल ख़ूबसूरती की मालिक थी, शाह मग़रिब तैमूस की बेटी थी। एक रात उसने ख़्वाब में एक बेहद हसीन और नूरानी शख़्स को देखा। उसने पूछा — आप कौन हैं? तो उस शख़्स ने कहा — मैं मिस्र का अज़ीज़ (वज़ीर) हूँ।

यह सपना ज़ुलेखा के दिल पर ऐसा असर कर गया कि वह हर पल उसी ख़्वाब को याद करने लगी। जब बड़े-बड़े बादशाहों के शादी के प्रस्ताव आए, तो उसने सबको ठुकरा दिया और साफ़ कह दिया कि वह तो सिर्फ़ अज़ीज़-ए-मिस्र से ही निकाह करेगी। आख़िरकार, उसके पिता शाह तैमूस ने उसका निकाह अज़ीज़-ए-मिस्र से कर दिया।

यूसुफ़ (अ.स.) से मुलाक़ात

शादी के बाद जब ज़ुलेखा ने अपने शौहर को देखा, तो वह हैरान रह गई क्योंकि वह वही शख़्स नहीं थे जिन्हें उसने ख़्वाब में देखा था। कुछ समय बाद, अज़ीज़-ए-मिस्र मिस्र के बाज़ार में गए और वहाँ बिक रहे हज़रत यूसुफ़ (अ.स.) को ख़रीद कर अपने घर ले आए।

जैसे ही ज़ुलेखा ने हज़रत यूसुफ़ (अ.स.) को देखा, उसने तुरंत पहचान लिया कि यह वही चेहरा है जो उसने सपने में देखा था। उसी पल से वह यूसुफ़ (अ.स.) की मोहब्बत में दीवानी हो गई।

महल के सात कमरे और इम्तिहान

ज़ुलेखा ने एक शानदार महल बनवाया जिसमें सात कमरे थे। उसने उसे बेहद ख़ूबसूरती से सजाया। एक दिन उसने किसी बहाने हज़रत यूसुफ़ (अ.स.) को उस महल में बुलाया और जैसे-जैसे वह कमरे बदलती गई, हर कमरे का दरवाज़ा बंद करती चली गई, जब तक कि दोनों सातवें कमरे तक पहुँच गए।

वहाँ पहुँचकर उसने यूसुफ़ (अ.स.) को बुराई की दावत दी।

अल्लाह का डर और पैग़म्बर की नसीहत

अचानक कमरे की छत फटी और हज़रत याक़ूब (अ.स.) नज़र आए। उन्होंने अपनी उंगली दाँतों में दबाकर इशारा किया — बेटा! ख़बरदार, बुराई का इरादा भी दिल में न लाना।

यह सुनते ही यूसुफ़ (अ.स.) ने ज़ुलेखा से कहा — अल्लाह से डर, और इस महल-ए-सरूर को महल-ए-ग़म मत बना। लेकिन ज़ुलेखा ने न मानी और यूसुफ़ (अ.स.) को पकड़ने की कोशिश की।

सच्चाई का खुलासा

यूसुफ़ (अ.स.) भागने लगे और हर कमरे का ताला अपने-आप खुलता गया। ज़ुलेखा पीछे-पीछे दौड़ती रही और पीछे से उनका कुरता पकड़ लिया, जिससे कुरता पीछे से फट गया।

बाहर पहुँचते ही दोनों का सामना अज़ीज़-ए-मिस्र से हुआ। ज़ुलेखा ने झूठ बोलते हुए कहा — यूसुफ़ ने मुझ पर बुरी नज़र डाली है

यूसुफ़ (अ.स.) ने सच बताया कि असल में ज़ुलेखा ने ही कोशिश की थी। अज़ीज़-ए-मिस्र ने सच्चाई का सबूत मांगा। उसी कमरे में मौजूद ज़ुलेखा का तीन महीने का भांजा, जो पालने में लेटा था, अल्लाह के हुक्म से बोल उठा और कहा — अगर कुरता आगे से फटा है तो ज़ुलेखा सच्ची है, और अगर पीछे से फटा है तो यूसुफ़ (अ.स.) सच्चे हैं।

कुरता पीछे से फटा था, और इस तरह सच्चाई सबके सामने आ गई। अज़ीज़-ए-मिस्र ने यूसुफ़ (अ.स.) से माफ़ी मांगी।

हमें इस वाकिए से क्या सीख मिलती है?

  • अल्लाह से डर रखना हर बुराई से बचाता है।

  • सच्चाई और सब्र अंत में जीतते हैं।

  • झूठ कितना भी बड़ा हो, हक़ीक़त एक दिन सामने आ ही जाती है।

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